Court Rejects Nirmala Sitharaman Plea: पति-पत्नी के आर्थिक हित अब अलग हो सकते हैं

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Nirmala Sitharaman

भारत की न्यायपालिका ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। यह फैसला पति-पत्नी के बीच आर्थिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों के संदर्भ में बेहद अहम माना जा रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अब पति और पत्नी के आर्थिक हितों को एक नहीं माना जाएगा, बल्कि दोनों अपने-अपने अलग वित्तीय निर्णय और संपत्ति अधिकारों के लिए स्वतंत्र होंगे।

यह मामला तब चर्चा में आया जब वित्त मंत्री ने एक नीति से जुड़ी कानूनी व्याख्या पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि पति-पत्नी की आयकर, संपत्ति या निवेश से जुड़ी नीतियाँ एक इकाई की तरह देखी जानी चाहिए ताकि पारिवारिक वित्तीय नीति में एकरूपता बनी रहे। परंतु अदालत ने इसे व्यक्तिगत आर्थिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया और कहा कि विवाह का अर्थ आर्थिक निर्भरता नहीं है।

यह फैसला भारत में आर्थिक अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी आर्थिक समानता और निजता का नया अध्याय खोलता है।

Court Rejects Nirmala Sitharaman Plea

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि पति या पत्नी में से कोई भी व्यक्ति दूसरे के नाम पर लिए गए वित्तीय निर्णयों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसका अर्थ यह है कि अब यदि किसी के ऊपर बैंक ऋण, निवेश या कर संबंधित मामला हो, तो दूसरा जीवनसाथी स्वतः उसमें शामिल नहीं माना जाएगा।

इसका सीधा प्रभाव कर प्रणाली, बैंकिंग नियम, और निवेश योजनाओं पर पड़ेगा। पहले तक कई योजनाओं में पति-पत्नी को संयुक्त खाताधारक या संयुक्त करदाता मानकर लाभ दिया जाता था। अब ऐसी नीतियों में अलगाव होगा, जिससे हर व्यक्ति की वित्तीय स्थिति का आकलन स्वतंत्र रूप से किया जाएगा।

यह निर्णय “वित्तीय स्वायत्तता की अवधारणा” पर आधारित है। अदालत ने कहा कि आर्थिक निर्णयों में समानता तभी आ सकती है, जब दोनों व्यक्तियों को व्यक्तिगत अधिकार और जिम्मेदारी दी जाए।

सरकार की दलील और अदालत की प्रतिक्रिया

सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया था कि संयुक्त वित्तीय नीति से पारिवारिक स्थिरता बनी रहती है। उनका कहना था कि भारत की सामाजिक संरचना ऐसी है जहाँ पति-पत्नी मिलकर परिवार के आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करते हैं, इसलिए उन्हें एक आर्थिक इकाई की तरह देखना चाहिए।

लेकिन अदालत ने इस दलील को सामाजिक रूप से सही होते हुए भी कानूनी दृष्टि से असंगत बताया। न्यायालय ने कहा कि संविधान हर व्यक्ति को अपने निर्णय और संपत्ति पर अधिकार देता है। विवाह के बाद भी यह अधिकार समाप्त नहीं होता। इसलिए आर्थिक मामलों में पति-पत्नी की स्वतंत्रता को एकसमान रूप से बनाए रखना आवश्यक है।

कौन-सी योजना पर यह असर डालेगा

यह फैसला मुख्य रूप से उन सरकारी और निजी योजनाओं पर असर डालेगा जहाँ पति-पत्नी को संयुक्त लाभार्थी या टैक्स यूनिट माना जाता था।
उदाहरण के लिए, आयकर कानून में पति-पत्नी की संयुक्त आय पर लगाए जाने वाले कर या उनके नाम पर चल रही संयुक्त निवेश योजनाएँ अब अलग-अलग आंकी जाएँगी।

सरकारी बचत योजनाओं, पेंशन योजनाओं, और बीमा लाभों में भी यह बदलाव दिखाई देगा। अब अगर कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के साथ संयुक्त खाते में निवेश करता है, तो दोनों के हिस्से का लाभ और कर अलग-अलग तरीके से जोड़ा जाएगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और आर्थिक घोटालों या गलत दावों की गुंजाइश घटेगी।

कानूनी और सामाजिक परिणाम

कानूनी रूप से यह फैसला भारत में वैवाहिक संपत्ति के अधिकारों को फिर से परिभाषित करता है। पहले विवाह के बाद अधिकांश मामलों में आर्थिक निर्णय संयुक्त रूप से लिए जाते थे। अब कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आर्थिक साझेदारी का आधार इच्छा हो सकता है, बाध्यता नहीं।

सामाजिक दृष्टि से इसे महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के रूप में देखा जा रहा है। अब महिलाएँ अपनी संपत्ति, निवेश और आय पर पूर्ण नियंत्रण रख सकेंगी। यह निर्णय मध्यमवर्गीय और कामकाजी जोड़ों के लिए अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि वहाँ दोनों की आमदनी और निवेश के कई साझा पहलू होते हैं।

विरोध और समर्थन

फैसले के बाद कई सामाजिक संगठनों और महिला अधिकार समूहों ने अदालत के इस दृष्टिकोण की सराहना की। उनका कहना है कि यह निर्णय भारतीय समाज में समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मजबूत करेगा। वहीं, कुछ पारंपरिक समूहों ने इसे भारतीय पारिवारिक मूल्यों के विपरीत बताते हुए विरोध दर्ज कराया है। उनका मानना है कि इससे परिवार की आर्थिक एकता पर असर पड़ सकता है।

निष्कर्ष

अदालत का यह फैसला भारत में पति और पत्नी के बीच आर्थिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह निर्णय बताता है कि विवाह का बंधन भावनात्मक और सामाजिक हो सकता है, लेकिन आर्थिक रूप से हर व्यक्ति आत्मनिर्भर और स्वतंत्र रहेगा।

यह परिवर्तन आने वाले समय में भारत की कर व्यवस्था, पारिवारिक वित्तीय निर्णयों और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को गहराई से प्रभावित करेगा। यह निस्संदेह भारतीय समाज में एक नए युग की शुरुआत है, जहाँ विवाह के बाद भी व्यक्ति की पहचान और आर्थिक शक्ति उसके अपने हाथों में रहेगी।

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